भारत की इस जनजाति का दूल्हा होता है लाचार, बिना ख़ून पिए नहीं मिलती उसे दुल्हन, जानें
भारत के बारे में किसी को कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है। भारत एक बहुत ही विशाल देश है। इस देश में विविधता विश्व में सबसे ज़्यादा देखने को मिलती है। भारत में कई धर्म, जातियों और समुदायों के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं। इसके साथ ही यहाँ प्राकृतिक तौर पर भी विविधता सबसे ज़्यादा देखने को मिलती है। भारत में कई जातियों, धर्मों और समुदायों के लोग रहते हैं, इसलिए सबके नियम भी अलग-अलग है। आप तो जानते ही हैं कि हिंदू और मुस्लिम धर्म के अपने-अपने अलग नियम है।
ऐसे ही यहाँ के अन्य समुदायों के भी अपने अलग-अलग नियम-क़ानून हैं। हालाँकि कुछ नियम-क़ानून और मान्यताएँ एक जैसी भी होती है, लेकिन कुछ मान्यताएँ बिलकुल अलग होती हैं। इनमें से कुछ जनजातियों और समुदायों के नियम-क़ानून और परम्परा ऐसी भी हैं, जिनके बारे में आपने पहले कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। जो भी इन परम्पराओं के बारे में सुनता है, एक बार बिना हैरान हुए नहीं रह पाता है। आज हम आपको एक ऐसी ही पुरानी परम्परा और नियम के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे सुनने के बाद यक़ीनन आप हैरान हुए बिना नहीं रह पाएँगे।
आप तो जानते ही हैं कि भारत के हर प्रांत में अलग-अलग तरह के लोग रहते हैं। उनकी संस्कृति और परम्परा बिलकुल अलग होती है। भारत में पायी जाने वाली जनजातियों में गोंड जनजाति सबसे ज़्यादा हैं। आज हम आपको गोंड जनजाति के एक अनोखे नियम के बारे में बताने जा रहे हैं। गोंड जनजाति मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के अंदरूनी भागों में पाए जाते हैं। गोंड जनजाति के लोग विवाह के समय एक बहुत ही अजीबो-ग़रीब रस्म का पालन करते हैं। जब तक विवाह के समय इस रस्म का पालन नहीं किया जाता है, तब तक विवाह सम्पन्न नहीं होता है।
इस रस्म के अनुसार दूल्हे को किसी एक जानवर की बलि चढ़ाकर उसके ताज़े ख़ून को पीना होता है। जब तक दूल्हा इस रस्म का पालन नहीं करता है, तब तक विवाह नहीं हो पाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दुल्हन पक्ष की तरफ़ से शादी के समय सुअर लाया जाता है। शादी की आख़िरी रस्म के दौरान दूल्हा इसी सुअर को मारता है और फिर इसका ख़ून पीता है। दूल्हा सुअर के पैर से ख़ून का सेवन करता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें आज के इस आधुनिक युग में भी गोंड जनजाति काफ़ी पिछड़ी हुई है।
इस जनजाति के लोग आधुनिकता को स्वीकार नहीं करते हैं और पुराने तरीक़े से ही अपना जीवन जी रहे हैं। यही वजह है कि ये जैसे सालों पहले थे वैसे आज भी हैं। आज भी इस समुदाय के लोग उन रितियों का पालन करते हैं जिनका पालन सैकड़ों सालों पहले किया जाता था। ये समय के साथ अपनी परम्पराओं को बदलते नहीं है। ऐसी कई अन्य परम्पराएँ और रीति-रिवाज हैं जिसक पालन इस समुदाय के लोग आज भी कड़ाई करते हैं। शादी की इस अजीबो-ग़रीब रस्म के बिना शादी अधूरी मानी जाती है।