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इस मंदिर में ख़ुद से प्रकट हुई थी भगवान की मूर्ति, जानिए मंदिर के बारे में कुछ ख़ास बातें

भारत में हर प्रांत में कई मंदिर हैं, लेकिन दक्षिण भारत के मंदिर अपनी भव्यता और शिल्प कला के लिए जाने जाते हैं। दक्षिण भारत के सभी मंदिरों में तिरुपति बालाजी का मंदिर सबसे ज़्यादा फ़ेमस हैं। आपको बता दें तिरुपति बालाजी का मंदिर आन्ध्र प्रदेश के चित्तुर जिले में स्थित है। इस मंदिर को भारत के सबसे धनी मंदिरों के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर में हर रोज़ करोड़ों रुपए का दान आता है। इसके साथ ही इस मंदिर की कुछ ऐसी विशेषता भी है, जिसके बारे में बहुत काम लोग जानते हैं।

आपको बता दें तिरुपति बालाजी को भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन्हें प्रसन्न करने के बाद देवी लक्ष्मी ख़ुद-ब-ख़ुद आपके ऊपर मेहरबान हो जाती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति यहाँ अपने मन के पापों और बुराइयों को छोड़ देता है देवी लक्ष्मी उसके जीवन से सभी दुःख दूर कर देती हैं। याहन लोग अपने बालों को अपनी बुराइयों के रूप में छोड़ देते हैं। लोग ऐसा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए करते हैं, ताकि उनके ऊपर धन की देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहे।

भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा के दौरान तुलसी का बहुत महत्व होता है। यही वजह है कि सभी मंदिरों में चढ़ाया गया तुलसी पत्र बाद में प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है। तिरुपति बालाजी मंदिर में भी हर रोज़ तुलसी पत्र चढ़ाया जाता है। लेकिन यहाँ तुलसी पत्र को बाद में प्रसाद के रूप में दिया नहीं जाता है बल्कि उसे मंदिर परिसर में मौजूद कुएँ में फेंक दिया जाता है। इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह मंदिर मेरु पर्वत के सप्त शिखर पर बना हुआ है, जिसे भगवान शेषनाग के प्रतीक के रूप में माना जाता है।

इस पर्वत को शेषांचल भी कहा जाता है। इस पर्वत की सात चोटियाँ शेषनाग के सात फ़नो का प्रतीक है। इन चोटियों को शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ाद्रि, अंजनाद्रि, वृषटाद्रि, नारायणाद्रि और वेंकटाद्रि आदि के नाम से जाना जाता है। इनमें से वेंकटाद्रि चोटी पर भगवान विष्णु विराजित हैं, इसी वजह से इन्हें वेंकटेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में काले रंग की दिव्य मूर्ति स्थापित है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसे किसी ने बनाया नहीं है, बल्कि यह ख़ुद ही ज़मीन से प्रकट हुई थी। स्वयं प्रकट होने की वजह से यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है।

आपको बता दें वेंकटाचल पर्वत को भगवान का स्वरूप ही माना जाता है, इसलिए वहाँ लोग जूते-चप्पल पहनकर नहीं जाते हैं। तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान के तीन बार ही दर्शन होते हैं। अहला दर्शन विश्वरूप कहलाता है जो सुबह के समय किया जाता है। दूसरा दर्शन दोफ़र में और तीसरा दर्शन रात के समय किया जाता है। इन तीनों दर्शनों के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। इसके अलावा भी कई दर्शन होते हैं, जिनके लिए लोगों को शुल्क देना पड़ता है। बालाजी की मूर्ति का पूरा दर्शन केवल शुक्रवार के दिन सुबह अभिषेक के समय ही किया जा सकता है।

बालाजी के दर्शन से पहले कपिल तीर्थ पर स्नान करके कपिलेश्वर का दर्शन करना चाहिए। इसके बाद वेंकटाचल पर्वत पर जाकर बालाजी का दर्शन करना चाहिए। तिरुपति बालाजी का दर्शन करने के बाद तिरुण्चानूर जाकर पद्मावती के दर्शन की परम्परा है। जो लोग ऐसा करते हैं, उनके जीवन की सभी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। यहाँ पर बालाजी के मंदिर के साथ ही कई और मंदिर भी हैं। आकाश गंगा, पापनाशक तीर्थ, वैकुंठ तीर्थ, जालावितीर्थ, तिरुच्चानूर आदि। आपकी जानकारी के लिए बता दें इन सभी जगहों को भगवान की लीलाओं के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि श्रीरामानुजाचार्य लगभग 150 साल तक जीवित थे और पूरी उम्र भगवान की सेवा करते रहे। अंत में भगवान विष्णु ने उन्हें इसी जगह पर दर्शन दिया था।

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