हलाला और तीन तलाक से भी ज्यादा खौफनाक है मुता निकाह, जान कर हो जाएंगे रौंगटे खड़े
बीते दिनों तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की तलवार चलने के बाद मुसलमानों के एक और अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है। क्योंकि जिस बिनाह पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक महिलाओं के साथ धोखा बताया था। वैसे ही इस बार एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में मुता निकाह और मिस्यान निकाह के खिलाफ डाली गई है। जिसको कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। जिसके बाद इस मामले में भी कोर्ट जल्द ही फैसला सुना सकता है। जबकि कोर्ट में निकाह हलाला और बहुविवाह को भी कोर्ट लगातार संज्ञान में लेकर सुनवाई कर रहा है।
मुसलमानों में कई तरह के निकाह का चलन है। ऐसे में ज्यादातर मौका परस्त मुसलमान खुद को आजाद मानते हुए तीन तलाक का हथियार की तरह इस्तेमाल करते थे। जिसको कोर्ट ने छीन लिया। साथ ही निकाह हलाला, बहुविवाह के अलावा अब मुता निकाह और मिस्यार निकाह पर भी लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से खत्म करने के लिए मांग की है। जी हां मुता या मिस्यार निकाह जिसमें एक बॉन्ड भरकर निश्चित समय के लिए शादी की जाती है, और अवधि पूरी होने के बाद पति पत्नी का आपसी रिश्ता उसी तारीख के हिसाब से खत्म हो जाता है। जिसे हैदराबाद के मौलिम मोहिसिन बिन हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर खत्म करने की मांग की है।
शरीयत से भी हटाया जाए
बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्वनी उपाध्याय ने ये जनहित याचिका कोर्ट में दाखिल की। जिसको कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। याचिका के वादी मोहसिन ने महिलाओं को संविधान में मिले बराबरी और जीवन के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 14,15 और 21 की दुहाई देते हुए मुता और मिस्यार निकाह, निकाह हलाला और बहुविवाह को रद करने की मांग की है। इसके अलावा शरीयत एक्ट 1937 की धारा 2 की उन बातों को को भी हटाने के की मांग की है, जिनमें इन शादियों को मान्यता दी गई है।
क्या है मुता और मिस्यार निकाह
याचिकाकर्ता मोहसिन ने बताया कि मुता विवाह छह महीने, साल भर दो साल या पांच साल जो दोनों पक्षों को मंजूर हो वो अवधि तय कर दी जाती है। इसके साथ ही मुता विवाह का अधिकार सिर्फ पुरुषों को मिला हुआ है। महिलाए मुता विवाह नहीं कर सकतीं।यही मिस्यारी निकाह में भी होता है।
महिलाओं को नहीं है ये अधिकार
शिया मुसलमानों में मुता और सुन्नी मिस्यार निकाह करते हैं। मुता और मिस्यार निकाह में मेहर तय करके एक निश्चित अवधि के लिए साथ रहने का लिखित करार किया जाता है। निकाह का समय पूरा होने पर स्वत: समाप्त हो जाता है और महिला तीन महीने तक एकांत वास करके इसकी अवधि को बिताती है। खास बात ये कि मुता निकाह की अवधि खत्म होने के बाद महिला का संपत्ति में कोई हक नहीं होता है और ना ही वो पति से हिस्सा या जीवनयापन के लिए कोई आर्थिक मदद मांग सकती है। जबकि निकाह में महिला ऐसा कर सकती है।
बच्चों का नहीं होता कोई भविष्य
याचिका में कहा गया है कि व्यवहारिक तौर पर ऐसे विवाहों से होने वाले बच्चों का भविष्य का कोई भरोसा नहीं रहता है। समाज में सम्मान नहीं मिलता। ऐसे में मुसलमानों में प्रचलित मुता और मिस्यार निकाह को अवैध और रद घोषित करने की मांग की है। इसके अलावा याचिका में निकाह हलाला और बहुविवाह को भी चुनौती दी गई है।