क्या आप जानते है साँपों की जीभ कटी हुई क्यों होती है और भगवान विष्णु की सवारी गरुड़ कैसे बना?
सभी लोगों को साँप की कटी जीभ(Snakes Tongue) देखकर हैरत होती है आखिर क्यों इनकी जीभ बीच से कटी हुई होती है? लोग यह भी जानना चाहते हैं कि भगवान विष्णु की सवारी गरुड़ क्यों है? जबकि वह क्षीरसागर में तो शेषनाग के ऊपर बैठकर आराम करते हैं। आज हम आपके सभी सवालों के जवाब लेकर आये हैं।
बहुत पहले की बात है, सभी साँप और गरुड़ दोनों सौतेले भाई थे। लेकिन साँपों की माँ कत्रू ने गरुड़ की माँ विनता को छल से अपनी दासी बना लिया। सभी साँपों ने गरुड़ के सामने यह शर्त रखी कि अगर वह स्वर्ग से उनके लिए अमृत लेकर आएगा तो उसकी माँ को दासता से मुक्त कर दिया जायेगा। यह सुनकर गरुण ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और सभी को परास्त कर दिया, युद्ध में स्वर्ग के देवता इन्द्र को उसने मारकर मुर्छित कर दिया। उसका यह पराक्रम देखकर भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उसे अपना वाहन बना लिया। गरुण ने भगवान विष्णु से यह वरदान भी माँग लिया कि वह हमेशा अमर रहेगा और उसे कोई नहीं मार सकेगा।
अमृत लेकर गरुड़ वापस धरती पर आ रहा था तभी इंद्रा ने उसपर अपने वज्र से प्रहार कर दिया।गरुड़ को अमरता का वरदान मिला था इसलिए उसपर वज्र के प्रहार का कोई असर नहीं हुआ। लेकिन गरुड़ ने इंद्र से कहा आपका वज्र दधिची के हड्डियों से बना हुआ है इसलिए मैं उनके सम्मान में अपना एक पंख गिरा देता हूँ। यह देखकर इंद्र ने कहा कि तुम जो अमृत साँपों के लिए ले जा रहे हो उससे वह पूरी श्रृष्टि का विनाश कर देंगे इसलिए अमृत को स्वर्ग में ही रहने दो।
जिन साँपों ने मेरी माँ को अपनी दासी बनाया है, वे सभी मेरा प्रिय भोजन बने (Story:Snakes tongue split into two distinct tines)
इंद्र की बात सुनकर गरुड़ ने कहा इस अमृत को देकर वह अपनी माँ को दासता से मुक्त कराना चाहता है, लेकिन मैं इस अमृत को जहाँ रख दूंगा आप वहाँ से उठा लीजियेगा। गरुड़ की यह बात सुनकर इंद्र बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि तुम मुझसे कोई वर मांगो। गरुड़ ने कहा कि जिन साँपों ने मेरी माँ को अपनी दासी बनाया है, वे सभी मेरा प्रिय भोजन बने। गरुड़ अमृत लेकर साँपों के पास पहुँचा और साँपों से बोला की मैं अमृत ले आया अब तुम मेरी माँ को अपनी दासता से मुक्त कर दो। साँपों ने ऐसा ही किया और उसकी माँ को मुक्त कर दिया। गरुड़ अमृत को एक कुश के आसन पर रख कर बोलता है कि तुम सभी पवित्र होकर इसको पी सकते हो।
सभी साँपों ने मिलकर विचार किया और स्नान करने चले गए। दूसरी तरफ इंद्र वही घात लगाकर बैठे हुए थे जैसे ही वह सभी चले जाते हैं वह अमृत कलश लेकर स्वर्ग भाग जाते हैं। जब साँप वापस आये तो उन्होंने देखा कि अमृत कलश कुश के असं पर नहीं है, उन्होंने सोचा कि जिस तरह से हमने छल करके गरुण की माँ को अपनी दासी बनाया हुआ था उसी तरह से हमारे साथ भी हुआ है। लेकिन उन्हें थोड़ी देर बाद ध्यान आता है कि अमृत इसी कुश के आसन पर रखा हुआ था तो हो सकता है इसपर अमृत की कुछ बूंदे गिरी हो। सभी कुश को अपनी जीभ से चाटने लगते हैं और उनकी जीभ बीच से दो भागों में कट जाती है।
इसी वजह से उनकी जीभ कट गयी (Snakes tongue split into two distinct tines)
तभी से सभी साँपों की जीभ कटी हुई है। कुश एक प्रकार की घास होती है जिसका किनारा धारदार होता है इसी वजह से उनकी जीभ कट गयी (Snakes tongue split into two distinct tines)। तभी से माना जाता है कि कुश हिन्दू धर्म के लिए बहुत पवित्र हो गया है और किसी भी पूजा के समय कुश का उपयोग किया जाता है।