महर्षि वाल्मीकि ने क्यूँ इस घटना के बाद ही प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण की रचना की ?
महर्षि वाल्मीकि एक ऐसा नाम है जो किसी परिचय का मोहताज नहीं ! जी हा वाल्मीकि वही है जिन्होंने रामायण की रचना की थी ! इतना ही नहीं इन्होंने पूरी रामायण श्लोक में बांध कर रची थी ! वैसे अभी हाल ही में 16 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती थी !
ये तो सब जानते है क़ि वाल्मीकि राम भक्त थे ,पर क्या आप ये जानते है क़ि महर्षि वाल्मीकि ने कठोर तप करके ये पदवी प्राप्त की थी और इतना ही नहीं वाल्मीकि को रामायण लिखने की प्रेरणा भी ब्रह्मा जी ने ही दी थी ! ब्रह्मा जी के कहने पर ही इन्होंने श्री राम के जीवन को आधार मान कर रामायण की रचना की थी ! तब वाल्मीकि ने रामायण नामक महाकाव्य लिखा !
गौरतलब है कि वाल्मीकि को रामायण की रचना श्लोक द्वारा रचित करने का ख्याल कैसे आया ! तो चलिए हम बताते है कि आखिर वाल्मीकि जी के साथ ऐसी क्या घटना हुई कि जिसके बाद उन्होंने इस तरह से रामायण की रचना की !
रामायण की रचना श्लोक द्वारा क्यूँ रची ..
दरअसल हुआ कुछ ऐसा कि रामायण के अनुसार एक बार वाल्मीकि तमसा नदी के किनारे गए और वहां उन्होंने दो पक्षियों के जोड़े को प्रेमक्रीड़ा करते हुए देखा ! पर तभी अचानक एक शिकारी ने नर पक्षी का शिकार कर उसे मार दिया जिससे वो जोड़ा अलग हो गया और मादा पक्षी उदास हो गयी ! ये सब देख कर वाल्मीकि बहुत व्याकुल हो गए ! वाल्मीकि अचानक करुणा से भर गए और इसी आवेश में उनके मुह से ये शब्द निकल गए या यू कहा जाये कि ये श्लोक निकल गए !
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:।
यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्॥
इस श्लोक में वो उस शिकारी को कह रहे है कि निषाद तुझे भी कभी शांति न मिले क्योंकि तूने दो प्रेमी जोड़ो को अलग कर डाला और एक मासूम पक्षी की हत्या कर दी ! वाल्मीकि जी ये सब बोल ही रहे थे कि अचानक उनको ख्याल आया कि उन्होंने सारी व्यथा श्लोक में ही कह डाली ! फिर जब वाल्मीकि अपने आश्रम पहुंचे तब भी वो इसी श्लोक के बारे में सोच रहे थे तो इतने में ब्रह्मा जी वहां आ पहुंचे और श्लोक सुन कर कहा कि अब आप रामायण में राम जी के चरित्र की हर व्याख्या श्लोक द्वारा ही करेगे और तब से वाल्मीकि जी को रामायण महाकाव्य लिखने की प्रेरणा मिली !
ये तो वाल्मीकि जी के जीवन का केवल एक पहलू है पर अगर आप उनके जीवन का दूसरा पहलू सुनेगे तो हैरान रह जायेगे ! जी हा आपको सुन कर हैरानी होगी कि अपने शुरूआती जीवन में वाल्मीकि जी लूट पाट करते थे और वाल्मीकि भी उनका असली नाम नही है ! है न चौंकाने वाली बात ! तो आगे पढ़िए कि आखिर रत्नाकर वाल्मीकि कैसे बने ?
रत्नाकर से वाल्मीकि बनने की व्यथा ..
असल में वाल्मीकि जी का नाम रत्नाकर था जो अपने जीवन में अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए लूट पाट करते थे ! फिर एक दिन वो एक आश्रम मुनि जी को लूटने के लिए पहुंचे ! पर जब मुनि जी से उनकी भेंट हुई तब मुनि जी ने पूछा कि आखिर तुम ये पाप क्यूँ कर रहे हो ? तब रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार का पेट भरने के लिए मुझे ये सब करना पड़ता है ! सुन कर मुनि जी ने पूछा कि क्या तुम्हारे इस पाप के लिए तुम्हारा परिवार भी तुम्हारे साथ दंड भुगतने को तैयार होगा ? ये सुन कर रत्नाकर तुरंत अपने परिवार के पास गया और उनसे पूछा कि क्या आप लोग मेरे साथ मेरे इस पाप का दंड भुगतेंगे तो सब ने मना कर दिया !
उसने मुनि जी को बताया तो मुनि जी ने उसे समझाया कि जिन लोगों के लिए तुम ये सब कर रहे हो जब वही तुम्हारा साथ नहीं दे रहे तो तुम्हे पाप को त्याग देना चाहिए !
ये सब जान कर रत्नाकर को पछतावा हुआ और उसने पश्चाताप का रास्ता ऋषि मुनि से पूछा ! मुनि जी ने कहा कि तुम्हे राम नाम का स्मरण करना चाहिए ! तभी से रत्नाकर एकांत और शांत स्थान पर बैठ कर राम का नाम जपने लगे और उन्होंने कठोर तप किया ! कई सालों तक तप करने से चींटियों ने उनके शरीर पर (बांबी) अर्थात मिटटी की परत सी बना ली थी ! जिससे उनका नाम वाल्मीकि पड़ गया और फिर कालांतर में उन्होंने रामायण महाकाव्य की रचना को पूरा किया ! महर्षि वाल्मीकि का कहना है क़ि वो अपने पूर्व जन्म में प्रचेता के पुत्र थे !
रामायण में होने वाली घटनाओ की पहले से थी जानकारी ..
ये सुन कर आप और भी हैरानी में पड़ जायेगे क़ि वाल्मीकि जी को रामायण में होने वाली घटनाओ की भविष्यवाणी पहले से ही ज्ञात हो गयी थी ! जैसे क़ि रावण की मृत्यु से पहले राक्षसी त्रिजटा का स्वप्न आना और जब राम जी ने सीता को त्याग दिया था तब सीता जी जिस आश्रम में ठहरी थी वो वाल्मीकि जी का ही आश्रम था ! अर्थात वाल्मीकि जी राम जी की समकालीन परिस्थितियों के बारे में जानते थे और इसका जिक्र उन्होंने महाकाव्य में भी किया ! इसलिए वाल्मीकि को भविष्यज्ञाता भी कहा गया है ! जो पहले ही हर चीज़ की भविष्यवाणी कर सकने में सक्षम हो !
अगर सीधे शब्दो में कहे तो रामायण की हर घटना की जानकारी वाल्मीकि को शुरुआत से ही थी ! यही वजह है क़ि वो रामायण की रचना इतने अच्छे ढंग से कर पाए !
वाल्मीकि जी के बारे में ये सब पढ़ कर आपको ज्ञात हो ही गया होगा कि अगर मन में इच्छा शक्ति हो तो पाप का रास्ता छोड़ कर पुण्य की राह पर चलना मुश्किल नहीं है ! इसलिए तो कहा जाता है कि वाल्मीकि का जीवन किसी प्रेरणा से कम नहीं !