यूपी में शुरु हुआ राजनीति का गंदा खेल – बीजेपी पर निशाना लगा SP और BSP में लगी मुस्लिम वोट बैंक लूटने की होड़
नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश में चुनावों के मद्देनज़र सभी पार्टियों ने जोड़-तोड़ शुरू कर दी है। यूपी चुनाव में हर बार की तरह इस बार भी मुस्लिम वोट बैंक पर डाका डालना, सियासी दलों और पार्टियों का सबसे बड़ा टारगेट है।
Uttar Pradesh assembly elections 2017.
हो भी क्यों ना …17 प्रतिशत मुसलमानों का वोट , नतीजे पलटने की ताकत जो रखता है। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच में मुसलमानों के सबसे बड़े हमदर्द दिखने की होड़ लग गई है।
मुस्लिम वोट बैंक के लिए पार्टियां क्या-क्या हथकंडे अपना रही हैं –
मुसलमानों का वोट पाने की सबसे पहली शर्त यह है कि उस पार्टी का बीजेपी से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं हो। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों आजकल एक दूसरे पर बीजेपी से मिले होने का आरोप लगा रहे हैं।
कुछ दिनों पहले मायावती ने अपनी रैली में कहा था कि मुसलमान समाजवादी पार्टी को वोट देकर अपना वोट बेकार न करें क्योंकि वहां परिवार के भीतर ही घमासान मचा हुआ है। उसके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी को बीजेपी से मिला हुआ बताते हुए आरोप लगाया था कि मौका मिला तो एक बार फिर मायावती बीजेपी के साथ जाकर सरकार बनाने से नहीं चूकेंगी। अखिलेश यादव ने यह भी कहा था कि मायावती पहले भी तीन बार बीजेपी की मदद से सरकार बना चुकी हैं इसलिए मुस्लिम उन पर कतई भरोसा ना करें।
जानें यूपी में क्या है मुस्लिम वोट बैंक का गणित –
कितने मुस्लिम वोट लाएंगे आजम –
समाजवादी पार्टी के पास बड़े मुस्लिम नेता मो. आजम खान हैं, जिन्हें पार्टी ने रुतबे के साथ नवाजा है। लेकिन शिया मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा पहले ही सपा और आजम से नाराज चल रहा है। आजम के अलावा सपा में हाजी रियाज अहमद, बुक्कल नवाब जैसे कई मुस्लिम नेता तो हैं लेकिन इन चेहरों को मुस्लिम वोट बटोरने में इतनी महारत नहीं है जितनी आजम में मानी जाती है। ऐसे हालात में सपा 2017 में कितने मुसलमान वोट अपने पल्ले में ला पाएगी, ये रहस्य तो भविष्य की गर्त में छिपा है।
बसपा से भी खफा हैं मुस्लिम! –
आगामी विधानसभा चुनाव में मजबूत दिख रही बहुजन समाज पार्टी में भी कोई ऐसा मुस्लिम चेहरा नहीं है, जिसके बूते मुसलमानों का वोट बहुतायत में हासिल किया जा सके। रही सही कसर बसपा सुप्रीमो मायावती ने पूरी कर दी। संडीला से कई बार बसपा के टिकट पर विधायक रह चुके कद्दावर नेता अब्दुल मन्नान और उनके भाई अब्दुल हन्नान को अनुशासनहीनता के आरोप में बाहर का रास्ता दिखा दिया। बसपा में मुस्लिमों की रहनुमाई करने वाली पार्टी में सिर्फ नसीमुद्दीन ही बड़े नेता के तौर पर बचे हैं, जिनसे मुसलमान पहले ही नाराज हैं।
बसपा सुप्रीमो ने नसीमुद्दीन को अपने मंत्रिमंडल में आबकारी विभाग देकर मुसलमानों की आंख का कांटा बना दिया था। तब मुस्लिम समाज ने उनके खिलाफ फतवा जारी कर उनके पद को इस्लाम विरोधी घोषित किया था , क्योंकि शराब को इस्लाम में हराम करार दिया गया है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि 2017 में बसपा कैसे मुस्लिम वोटर्स को अपने पल्ले में लाती है।
कांग्रेस के पास भी नहीं है कोई मुस्लिम चेहरा –
देश के सबसे पुराने दल कांग्रेस के पास भी उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा मुस्लिम चेहरा नहीं है, जिसके सहारे विधानसभा में विधायकों की संख्या को बढ़ाया जा सके।
बीजेपी को फायदा पहुंचाएगी ओवैसी की पार्टी –
मुसलमानों की हितैशी होने का दावा करने वाली पार्टी आल इन्डिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलेमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असददुदीन उवैसी पर इल्जाम लगाते रहे हैं कि वो मुसलमानों के वोटों का विभाजन करा कर भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए उत्तर प्रदेश में सक्रिय हुए हैं। उवैसी की जनसभाओं को उत्तर प्रदेश में प्रतिबन्धित कर सपा अपनी घबराहट तो दर्शा ही चुकी है।
मौजूदा समय में सत्ताधारी पार्टी के 43 विधायक शामिल हैं। इतनी बड़ी सख्या में मुस्लिम विधायकों की मौजूदगी में अगर प्रदेश के मुसलमान, पार्टियों से संतुष्ट नहीं हैं तो फिर 2017 में वे दल मुस्लिम वोटर को अपने पल्ले में कैसे ला पाएंगे, जिनमें कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा नहीं है।
मौजूदा हालातों को देखते हुए तो ऐसा लगता है कि 2017 में मुस्लिम वोटों का जबर्दस्त विभाजन होगा, जिसका सीधे तौर पर फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा। क्योंकि भाजपा अभी तक ये मानती रही है कि वो मुस्लिम वोट पा कर नहीं, बल्कि मुस्लिम वोटों के विभाजन से सत्ता तक पहुंचने में कामयाब होती है।