पुरानी मान्यता की वजह से यहाँ दहकती आग पर नंगे पैर चलते हैं लोग, फिर भी नहीं जलते हैं इनके पैर
आग पर नंगे पैर चलते हैं लोग: भारत प्राचीनकाल से ही एक पारम्परिक देश रहा है। यहाँ की संस्कृति और परम्परा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भारत को पूरे विश्व में इसी लिए जाना जाता है। यहाँ की परम्परा और संस्कृति बाहरी लोगों के लिए आकर्षण का विषय बनी रहती है। यही वजह है कि हर साल यहाँ की संस्कृति और परम्परा से कई लोग आकर्षित हो जाते हैं और यहीं अपना जीवन बिताने के लिए चले आते हैं। भारत की कुछ बातें यहाँ के लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन जाती हैं।
जानने के बाद हो जाएँगे हैरान:
जैसा की हम सभी लोग जानते हैं कि भारत एक विशाल और विविधता से भरा हुआ देश है। इसीलिए यहाँ पर कई तरह की संस्कृति और परम्पराएँ देखने को मिलती हैं। कुछ परम्पराएँ इतनी पुरानी हैं कि, उनके शुरुआत के बारे में सही जानकारी किसी के पास नहीं हैं। कुछ परम्पराओं को देखने के बाद लोगों की हैरानी का ठिकाना नहीं रह जाता है। आज हम आपको एक ऐसी ही परम्परा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे जानने के बाद आपकी भी हैरानी का ठिकाना नहीं रहेगा।
दहकते अंगारे पर चलकर उतारते हैं अपनी मन्नत:
मध्यप्रदेश के झबुआ जिले के पास होली के समय कुछ अजीबो-ग़रीब तरह की रश्में निभाई जाती हैं। इन्ही में से एक रश्म है लगभग 30 फ़ीट ऊँची लकड़ी की चौकी पर कमर के बल झूलते हुए देवता के नाम के नारे लगाए जाते हैं। वहीं दूसरी रश्म में लोग दहकते अंगारे पर चलकर अपनी मन्नत उतारते हैं। आपको बता दें इस कार्यक्रम में आस-पास के जिले के लोग भी शामिल होते हैं। धुलेंडी के दिन झबुआ जिले के बिलीडोज गाँव में गाल पर्व के दौरान यह अजीबो-ग़रीब नज़ारा देखने को मिलता है। आपको बता दें धुलेंडी पर पेटलावद, करड़ावद, बावड़ी, करवड़, अनंतखेड़ी, टेमरिया आदि स्थानों पर गल-चूल पर्व पारंपरिक रूप से मनाया।
माता का ध्यान करते हुए निकल जाते हैं अंगारों से:
इस दौरान गाँव में मन्नतधारियों ने दहकते अंगारे पर चलकर अपनी मन्नत पूरी की। इसके साथ ही अपने पूजनीय देवता के सामने अपना सिर भी झुकाया। आस्था के इस अद्भुत आयोजन को देखने के लिए केवल झबुआ जिले के ही नहि बल्कि पड़ोसी जिले रतलाम और धार के लोग भी बड़ी संख्या में पहुँचे थे। इस दौरान गाँव में लगभग तीन-चार फूट लंबे और एक फूट गहरे गड्ढे में दहकते हुए अंगारे रखे जाते हैं। माता के प्रकोप से बचने और अपनी मन्नत पूरी हो जाने के बाद लोग माता के नाम का ध्यान करते हुए दहकते अंगारे पर से निकल जाते हैं।
कोई विवाहित व्यक्ति ही उतार सकता है मन्नत:
आपको जानकार हैरानी होगी कि यह परम्परा नई नहि है बल्कि यह दशकों पुरानी परम्परा है। अंगारे के रूप में लगायी जाने वाली लकड़ियाँ और मन्नतधारी के आगे-आगे डाला जाने वाला घी गाँव के लोगों के घर से ही आता है। इस बार लगभग 25 किलो घी की आहुति दी गयी। यहाँ यह मान्यता है कि मन्नत कोई विवाहित व्यक्ति ही उतार सकता है। इसी वजह से काफ़ी मन्नतधारियों के परिवार वालों ने इस परम्परा को निभाया। यह पर्व यहाँ पर हर साल मनाया जाता है। इस दौरान यहाँ मेले जैसा माहौल बन जाता है।