जानिए ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में जहाँ शिवलिंग की नहीं बल्कि होती है उनके पैर के अंगूठे की पूजा
शिव के पैर के अंगूठे की पूजा: हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का क्या महत्व है, यह किसी को बताने की ज़रूरत नहि है। हर व्यक्ति पूजा-पाठ करके अपने जीवन को सफल बनाने की कोशिश करता रहता है। हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं के होने की मान्यता है, लेकिन इनमें से कुछ ही देवी-देवताओं की हर जगह पूजा की जाती है। इन्ही में से एक हैं भगवान शिव, भगवान शिव के भक्तों की संख्या भारत ही नहि बल्कि दुनिया के कोने-कोने में सबसे ज़्यादा है। यही वजह है कि भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर दुनिया के अन्य देशों में भी स्थित हैं।
अक्सर मंदिरों में होती है मूर्ति या शिवलिंग की पूजा:
ऐसा कहा जाता है कि सभी मंदिरों की अपनी कोई ना कोई ख़ासियत होती है। भगवान शिव के अक्सर सभी मंदिरों में मूर्ति या तो उनके लिंग की पूजा की जाती है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर कर बारे में बताने जा रहे हैं, जहाँ भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। जी हाँ सुनने में भले ही यह अजीब लगे लेकिन यह सच है। दरसल हम जिस शिव मंदिर की बात कर रहे हैं, वह राजस्थान के माउंट आबू के अचलगढ़ का अचलेश्वर महादेव मंदिर है। आपको जानकार हैरानी होगी कि इस मंदिर में भगवान शिव के पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है।
माउंट आबू है भगवान शिव की उपनगरी:
जानकारी के लिए आपको बता दें कि माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है और इसे अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है। इस जगह पर भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर स्थित है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव की नगरी वाराणसी है तो माउंट आबू भगवान शिव की उपनगरी है। अचलेश्वर महादेव मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर स्थित है। इस मंदिर के बारे में एक मान्यता प्रचलित है कि यहाँ का पर्वत भगवान शिव के अंगूठे की वजह से टिका हुआ है।
अंगूठे के नीचे बना है चमत्कारी गड्ढा:
जिस दिन इस जगह से भगवान शिव का अँगूठा ग़ायब हो जाएगा, उस दिन यह पर्वत भी ख़त्म हो जाएगा। यहाँ पर भगवान शिव के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक गड्ढा बना हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि इस गड्ढे में जितना भी पानी डाल लिया जाए लेकिन यह कभी भरता ही नहीं है। इसमें चढ़ाया जाने वाला पानी कहाँ चला जाता है, आज तक इसे कोई नहि जान सका है। अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर के चौक में चम्पा का एक विशाल पेड़ है। मंदिर के बायें तरफ़ दो खम्भों पर धर्मकांटा बना हुआ है।
अचलगढ़ क़िला बन चुका है अब खंडहर:
मंदिर के परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध और कलंगी अवतारों की काले रंग के पत्थर की विशाल और भव्य मूर्तियाँ हैं। मंदिर अचलगढ़ के क़िले के पास स्थित है। अब क़िला खंडहर बन चुका है। जानकारी के अनुसार इस क़िले का निर्माण परमार वंश द्वारा करवाया गया था। बाद में 1452 में महाराणा कुम्भा ने इस क़िले का पुनर्निर्माण करवाया और इसे अचलगढ़ नाम दिया।