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इस साल आर्थिक सर्वे का रंग है गुलाबी, क्या आप जानते हैं इसकी वजह

वर्तमान सरकार ने सोमवार को इस बार का अपना आर्थिक सर्वेक्षण संसद में पेश दिया है.. वैसे तो इस आर्थिक सर्वे का हर तथ्य अपने आप में महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस सर्वे में जहां एक तरफ पिछले साल की आर्थिक प्रगति का लेखा-जोखा मिलता है कि , वहीं दूसरी तरफ आगामी वित्तीय वर्ष में आर्थिक विकास की क्या राह होगी, उसकी योजना भी प्रस्तुत की जाती है.. लेकिन इन सबसे अलग इस बार के सर्वे में जो बात खास रही वो ये कि इस बार ये सर्वे सरकार ने गुलाबी रंग में पेश किया है। ऐसे में इस बात की हर तरफ चर्चा हो रही है कि आखिर सरकार ने आखिर इस रंग का चुनाव क्यों किया। तो चलिए आपको बताते हैं कि सरकार ने इस खास रंग को चुना है।

दरअसल बात ये है कि आमतौर पर तो आर्थिक सर्वे में देश के आर्थिक विकास से जुड़ी बातों का आकलन और जिक्र होता है पर वर्तमान सरकार ने इस बार के आर्थिक सर्वे को महिला सशक्तिकरण एवं लैंगिक समानता जैसे सामाजिक मुद्दे को समर्पित किया है.. ताकि लोगों का ध्यान लिंगभेद की तरफ खींचा जा सके और महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने की मुहिम को आवाज दी जा सके.. इस आर्थिक सर्वे के अनुसार पूर्वोत्तर राज्यों ने लैंगिक समानता के मुद्दे पर बेहतरीन प्रदर्शन किया है जो कि पूरे देश के लिए एक आदर्श हो सकता है। चूंकि पिंक कलर महिलाओं से जोड़ कर देखा जाता है ऐसे में आर्थिक सर्वे को पिंक कलर में पेश कर सरकार ने लैंगिक समानता की दिशा में लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश की है।

सोमवार को संसद में पेश किए गए इस आर्थिक सर्वे में भारत में लिंगभेद की गम्भीर समस्या और भारतीय समाज में बेटे की चाह के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। आर्थिक सर्वेक्षण में स्पष्ट किया गया है कि जिस तरह भारत ने वर्ल्ड बैंक के ‘इज ऑफ डूइंग बिजनस’ रैंकिंग्स में कई पायदान की छलांग लगाई है उसी तरह लैंगिक समानता के मामले में भी कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है.. ताकि जल्द से जल्द इस दिशा में अच्छे नतीजे पाए जा सके।

सर्वे के जरिए ये स्पष्ट करने की कोशिश की गई है कि लैंगिक समानता बहुआयामी मुद्दा है। दरअसल सर्वे में लैंगिक भेदभाव की बात तीन आयामों पर की गई है- एजेंसी, ऐटिट्यूड और आउटकम। यहां एजेंसी से मतलब प्रजनन, खुद पर और परिवार पर खर्च करने का फैसला लेने की क्षमता से है, वहीं ऐटिट्यूड से तात्पर्य महिलाओं और पत्नियों के प्रति हिंसा, बेटों की तुलना में बेटियों की संख्या से है। जबकि आउटकम के तहत आखिरी बच्चे के जन्म के आधार पर बेटा या बेटी को महत्व, परिवार नियोजन के फैसले, शिक्षा का स्तर, पहले बच्चे के जन्म के वक्त महिला के आयु आदि का अध्ययन किया गया है।

आर्थिक सर्वे में ये स्पष्ट किया गया है कि भारतीय समाज में बेटे की चाहत किस कदर है, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि किसी परिवार में आखिरी बच्चा लड़का है या लड़की। दरअसल जब इस सर्वे के लिए भारत में पड़ताल की गई तो पता चला कि देश के अधिकांश परिवारों में आखिरी बच्चा बेटे ही हैं। इसका मतलब है कि हमारे समाज में लोग आज भी अपना परिवार तब तक बढ़ाते रहते हैं जब तक बेटों की उनकी इच्छा पूरी ना हो जाए।  साफ है कि सरकार की बहुत सारी कोशिशों के इस दिशा में लोग जागरूक नहीं हुए हैं और बेटे-बेटी का भेद बना हुआ है।

साथ ही इस सर्वे में ये भी चिंता जाहिर की गई है कि नौकरियों में भी महिलाओं की संख्या बढ़ने के बजाय घट गई है.. बताया गया है कि 10 साल पहले जहां 36 प्रतिशत महिलाएं कामकाजी थीं वहीं अब कामकाजी महिलाओं की संख्या घटकर 24 फीसदी तक रह गई है। हालांकि इस आर्थिक सर्वे में ये भी बताया गया है कि महिलाओं के प्रति हिंसा की घटनाएं पहले की तुलना में काफी कम हुई हैं।

 

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