मान्यता के अनुसार इस मंदिर में जो भी चढ़ाता है कौड़ी हो जाता है करोड़पति, आप भी चढ़ाएं
वाराणसी: भारत एक धार्मिक देश है। यहाँ सर्वधर्म समभाव की भावना के साथ लोग आपस में मिलकर रहते हैं। यहाँ वैसे तो सभी धर्मों के लोग साथ मिलकर रहते हैं, लेकिन यहाँ हिन्दू धर्म को मानने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। इसके साथ ही यहाँ प्रकृति के पूजा की भी परम्परा है। भारत के कई ऐसे शहर हैं जो बहुत ज्यादा प्राचीन हैं। इन शहरों का अपना एक धार्मिक महत्त्व भी है।
भारत के वाराणसी शहर को पुरे विश्व के लोग धामिक नगरी के रूप में जानते हैं। वाराणसी की सुन्दरता और यहाँ के लोगों का अल्ल्हड़पन हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करता है। यहाँ के लोगों की जीवन जीने की अपनी एक ही शैली है। हर कोई मस्त होकर जीवन जीता है। लोगों को किसी चीज की फिक्र नहीं रहती है। सभी लोग गंगा घाट के किनारे जानें के बाद अपने सभी ग़मों को भूलकर मस्त रहते हैं। वाराणसी का नाम दो प्रमुख नदियों वरुणा और असी के नाम पर रखा गया है।
जैसा कि आपको पहले ही बताया जा चूका है, वाराणसी एक धामिक नगरी है। इसी वजह से यहाँ की हर गली में आपको कई मंदिर देखने को मिल जायेंगे। यहाँ मंदिरों की इतनी संख्या है कि आप गिनते-गिनते थक जायेंगे। वाराणसी में कई मंदिर तो इतने प्राचीन हैं, जिनके बारे में कोई नहीं जनता है। वाराणसी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। यहीं के खोजवां इलाके में दक्षिण भारतीय देवी का एक प्राचीन मंदिर है। इसे सबरी का स्वरुप माना जाता है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह मंदिर 10 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। भक्त इन्हें बाबा विश्वनाथ की बड़ी बहन मानते हैं।
यहाँ के पुजारी मनीष तिवारी ने बताया कि दक्षिण भारत से काशी का भ्रमण करने आई कौड़िया देवी भ्रमण के दौरान छुद्रों की बस्ती में गयी। वहां पर उन्होंने छुद्रों का अपमान किया। छुद्रों के छूने की वजह से उन्होंने खाने का त्याग किया और तपस्या पर बैठ गयी। उसके बाद माता अन्नपूर्णा ने उन्हें दर्शन दिया और उन्हें वहीँ कौड़ी देवी के रूप में विराजमान कर दिया। माता अन्नपूर्णा ने कहा कि जिस कौड़ी को कोई नहीं मानता है, तुम उसी रूप में रहो। हर युग में तुम्हारी पूजा करने वाला भक्त धनवान होगा। उसके बाद से ही यहाँ पर कौड़ी देवी की पूजा होने लगी।
माँ कौड़िया के काशी आने के बारे में पुराणों में भी मिलता है। माता कौड़िया को काशी विश्वनाथ की मानस बहन भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बिना इन्हें कौड़िया चढायें काशी दर्शन पूरा नहीं होता है। द्वापर युग में भगवान राम को सबरी ने जूठे बेर खिलाये थे। बाद में जब सबरी को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने भगवान् श्रीराम को सब सच बता दिया और उन्होंने सबरी को माफ़ कर दिया। भगवान राम ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कलयुग में तुम्हारी पूजा की जाएगी और भोग में कौड़िया चढ़ाई जाएगी। तुम काशी में जाकर वास करो, वहां तुम्हे छुआ-छूत से मुक्ति मिलेगी।