सिखों के टुकड़े करने वाले इस जल्लाद को शीला दीक्षित ने रिहा कराने की कोशिश की थी
बीते दिनों दस जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े 186 केस की फिर से जांच की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए एक नई SIT के गठन का निर्देश दिया है। क्योंकि पहले SIT ने इन केसों को बंद कर दिया था। साथ ही इन मामलों में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल कर दी थी। अब नई SIT में हाइकोर्ट के एक रिटायर्ड जज होंगे जो SIT के मुखिया होंगे उनके अलावा इसमें एक रिटायर्ड वरिष्ठ आईपीएस और एक मौजूदा वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी होंगे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में दिल्ली समेत भारत के कई इलाकों में सिख विरोधी दंगें फैल गए थे। इस दंगे के कई गुनहगारों में किशोरी लाल का नाम ऐसा है जिसको दंगों का जल्लाद कहा जाए तो भी कम है। लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब दिल्ली की तात्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस जल्लाद को रिहा करने की पहल शुरु कर दी थी।
दिल्ली के त्रिलोकपुरी में हुई इस घटना के बाद कसाई का काम करने वाला किशोरी लाल सिखों को गाजर मूली की तरह काट रहा था। जिसे लोगों ने ”त्रिलोकपुरी के कसाई” कहा था। नाम से जानने लगे थे। त्रिलोकपुरी पश्चिमी दिल्ली का एक इलाका है। 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद शुरू हुए हिंसा और लूटपाट के दौर में ये इलाका सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था। जिसको बाद में पुलिस ने गिरफ्तार किया और उसे फांसी की सजा सुनाई गई। लेकिन बाद में उसकी सजा को कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया। लेकिन दंगों के पीड़ितों का दर्द उस वक्त बढ़ गया था। जब तात्कालीन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस कसाई को रिहा कराने की तैयारी शुरु कर दी थी।
दरअसल दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने एक समय में पूर्व उपराज्यपाल तेंजेंद्र खन्ना से सिफारिश की थी, कि दंगा मामले में फांसी की सजा पाए किशोरी लाल को रिहा किया जाए, सरकार का तर्क था की किशोरी लाल का चाल चलन अच्छा है। मगर दिल्ली सरकार की सिफारिश को उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना ने वापस भेज दिया था। क्योंकि मामला सिख समुदाय की भावना से जुड़ा हुआ था। इसलिए राज्यपाल ने सरकार को सिफारिश वापस लौटा दी और दोबारा रिव्यू करने को कहा था।
दरअसल तिहाड़ जेल ने सजा काट रहे 36 कैदियों की सूची सरकार को रिव्यू के लिए भेजी थी। इस सूची में किशोरी लाल का भी नाम था। किशोरी लाल को निचली अदालत सात मामलों में फांसी की सजा सुना चुकी है जबकि इनमें से तीन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दिया। तिहाड़ की सिफारिश पर तात्कालीन मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी ने 36 में से 16 कैदियों की रिहाई को मंजूरी दे दी थी।
ये वही किशोरी लाल हैं जिनके बारे में सुनते ही, त्रिलोकपुरी में रहने वाले मंशा सिंह के सामने पूरा मंजर सामने आ जाता है। मंशा बताते हैं कि 31 अक्टूबर 1984 के दिन मीट की दुकान चलाने वाला किशोरी लाल धारदार चाकू से भेड़ की खाल निकाल रहा था। लेकिन एक दिन बाद मंशा सिंह ने उसी चाकू से अपने बेटे दर्शन सिंह की बाहें काटते हुए देखा था। मंशा अपनी जान बचाने के लिए एक कपड़े के पीछे छिप गए थे। मंशा सिंह बताते हैं, ‘किशोरी लाल भीड़ की अगुवानी कर रहा था, और उसने मेरे बेटे को घर से निकाला और उस चाकू और रॉड से हमला किया।’
मंशा सिंह कहते कहते भावुक हो जाते हैं, और बताते हैं, ‘मैंने अपनी आंखों के सामने अपने 3 बेटों को मरते हुए देखा, उन्हें टुकड़ों-टुकड़ों में कर दिया गया, लोहे की छड़ से पीटा गया, मैं अपने बच्चे को बचा नहीं सका, मैं नहीं जानता कि वाहे गुरु ने मुझे क्यों जिंदा रखा है, मैं तो ऐसा अपने शत्रु के लिए भी ऐसा नहीं सोचता हूं।’ लेकिन उनका दिल उस वक्त पूरी तरह टूट गया था जब शीला सरकार ने किशोरी लाल को रिहा करने की सिफारिश की। लेकिन राज्यपाल के फैसले से उनको सुकून मिला।