राजनीति

कैदी पैदा करना चाहता था बच्चे, हाईकोर्ट ने सुना दिया हिन्दुस्तान का चौंका देने वाला फैसला

हिन्दुस्तान में जिसकी सुनवाई कहीं नहीं होती उसको कोर्ट सुनती है। कई बार कोर्ट ऐसे फैसले सुनाती है। जो मिसाल बन जाते हैं। शायद इसीलिए कोर्ट पर आज भी लोगों का विश्वास कायम है। लेकिन जिस ख़बर की आज हम बात करने जा रहे हैं, वो देश के इतिहास में शायद ही पहले कभी हुआ हो। मामला तमिलनाडु हाईकोर्ट से सामने आया है। जहां लंबे समय से उम्रकैद की सजाकाट रहे एक कैदी को जेल से छुट्टी मिली है। जिसके बाद देश के उन तमाम लोगों के लिए राहत की बात है, जो किसी कारण से लंबे समय से जेल में बंद है। जिससे उनका परिवार नहीं बढ़ पाद रहा है।

दरअसल तमिलनाडु की मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश एस विमला देवी और जस्टिस टी कृष्ण वल्ली की खंडपीठ ने पलयमकोट्टई केंद्रीय कारागार के कैदी सिद्दीकी अली को पिता बनने के लिए छुट्टी दी है। हाईकोर्ट ने कैदी सिद्दीकी अली की 32 वर्षीय पत्नी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे दो हफ्ते के लिए रिहा करने का फैसला सुनाया। जिसके बाद सिद्दीकी और उसकी पत्नी बेहद खुश है। साथ ही बाकि कैदियों की भी उम्मीदें बढ़ गई हैं।

फैसला सुनाने वाली पीठ ने देश की सरकारों को भी एक राह दिखाने का काम किया। हाईकोर्ट ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि सरकार को एक समिति का गठन कर कैदियों को अपने जीवन साथी के साथ रहने और संबंध बनाने की मंजूरी देने पर विचार करना चाहिए। हाईकोर्ट ने इस बात को रखते हुए कहा कि कुछ देशों में कैदियों के दाम्पत्य जीवन के अधिकार को मान्यता दी गई है। ऐसे में हम भी कैदियों के लिए ये विचार कर सकते हैं। साथ ही अगर कैदियों की संख्या अधिक है तो सरकार को ऐसी समस्याओं से भी समाधान मिल सकता है।

सिद्दीकी अली को छुट्टी देने से पहले कोर्ट ने उसका मेडिकर परीक्षण भी कराया। अदालत ने कहा कि मेडिकल जांच में पता चला है कि कैदी परिवार बढ़ा सकता है। ऐसे में रिहा होने के बाद मेडिकल जांच के लिए दो सप्ताह की एक्स्ट्रा अतिरिक्त छुट्टी पर विचार किया जा सकता है। इसके साथ ही अदालत ने जेल अधिकारियों को भी प्रक्रिया का पालन करने और कैदी के जेल से बाहर रहने के दौरान सुरक्षा देने का निर्देश दिया है।

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि केंद्र ने पहले ही एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है। जिसमें कह गया है कि पति और पत्नी को संबंध स्थापित करने का अधिकार मिला हुआ है। ना कि विशेषाधिकार तथा कैदियों को अपनी इच्छा पूरी करने का अधिकार है। हाईकोर्ट ने माना की दाम्पत्य जीवन में संबंधों से परिवार के साथ रिश्ते कायम रखने में मदद मिलती है, साथ ही व्यक्ति में आपराधिक प्रवृत्ति कम होती है, ऐसे में अगर कैदियों के जीवन में सुधार और न्याय व्यवस्था को नई उंचाई देनी है तो व्यक्ति चाहे वो कैदी ही क्यों न हो उसे मौका मिलना चाहिए।

वैसे कैदियों को इस प्रकार के अधिकारों की अनुमति देने से ये सवाल भी उठेंगे कि जेल में बंद महिला कैदी के गर्भवती होने पर जेल प्रबंधन द्वारा उसकी देखरेख कैसे होगी। भारतीय जेलों में बहुत-सी महिला कैदी अपने छोटे बच्चों को अपने साथ ही रखती हैं। 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में रह रहे बच्चों के बारे में टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसिस की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि बच्चों के लालन-पालन के लिए जेल जीवन किसी प्रकार भी बेहतर नहीं है। इस रिपोर्ट में ऐसे भी उदाहरण दिए गए हैं जब लम्बे समय से महिला वार्ड में पल-बढ़ रहे लड़कों ने खुद का संदर्भ स्त्रीलिंग के रूप में ही दिया। जेल में बंद बच्चे जितने हिंसक व आक्रामक हो सकते हैं उतनी ही संभावना यह भी होती है कि वे गुमसुम रहने लगें तथा जानवरों से डरने लगें।

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