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शादीशुदा लोग ध्यान रखें रामचरित मानस की यह एक बात, बर्बाद होने से बच जाएगी शादीशुदा जिंदगी

हिन्दू धर्म में शादी को एक संस्कार की तरह माना गया है। जैसे जीवन में एक व्यक्ति के लिए अन्य काम जरुरी होते हैं ठीक उसी तरह से उसके जीवन में शादी भी बहुत जरुरी है। शादी के बाद ही वंशवृद्धि हो सकती है। शादी एक बहुत ही पवित्र बंधन होता है जो विश्वास की डोर से बंधा होता है। विश्वास की यह डोर बहुत मजबूत और बहुत ही कमजोर होती है। यानी यह परिस्थितियों के ऊपर निर्भर करता है। जो पति-पत्नी एक दुसरे पर यकीन नहीं करते हैं, उनकी शादीशुदा जिंदगी में अशांति होना तय है।

दोनों के बीच में भरोसा ना होने की वजह से लड़ाई-झगडे आमतौर पर होते ही रहते हैं। इसलिए दोनों को यह पूरी कोशिश करनी चाहिए कि दोनों के बीच अविश्वास की स्थिति पैदा ही ना होने पाए। अविश्वास होने पर ही वैवाहिक रिश्ता टूट जाता है। इस बात को अच्छे से समझने के लिए आज हम आपको हिन्दू धर्म के प्रसिद्द ग्रन्थ रामचरित मानस के शिव-सती के एक प्रसंग के बारे में बताएँगे। इसके बाद आप इस बात को अच्छे से समझ जायेंगे।

श्रीरामचरित मानस में शिव-सती का एक प्रसंग है। एक बार शिव-सती अगस्त ऋषि के आश्रम में कथा सुनने गए। सती ने जब यह सुना कि श्रीराम शिव के आराध्य देव हैं। सती का ध्यान कथा सुनने में नहीं लग रहा था। उन्होंने यह सोचते हुए ही पूरा समय बिता दिया कि जो शिव तीनों लोकों के स्वामी हैं वह आखिर क्यों श्रीराम की कथा सुनने के लिए आये हुए हैं। कथा की समाप्ति पर शिव और सती लौटने लगे। यह वही समय था जब रावण ने माता सीता का अपहरण किया था और श्रीराम वियोग में जंगल-जंगल घूम रहे थे।

सती को यह देखकर और आश्चर्य हुआ कि शिव जो श्रीराम को अपना आराध्य मानते हैं, वह एक स्त्री के लिए एक साधारण इंसान की तरह रो रहा है। जब सती ने यह बात शिव के सामने कही तो उन्होंने कहा कि यह सब प्रभु श्रीराम की लीला है। तुम भ्रम में मत पड़ो। लेकिन सती को शिव जी की बातों पर यकीं नहीं हुआ। इसके बाद सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने की बात कही तो भगवान शिव ने उन्हें मना कर दिया। लेकिन सती को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा और वह सीता का रूप धारण करके श्रीराम के पास पहुँच गयी।

सती को पहचानकर श्रीराम ने कहा कि हे माता आप इस घने जंगल में आकेले क्या कर रही हैं, शिवजी कहा हैं। जब श्रीराम ने सती को पहचान लिया तो वह डरकर वापस शिवजी के पास आ गयी। जब इसके बारे में शिवजी ने पूछा तो वह कुछ आना बोली। लेकिन शिवजी समझ गए कि इन्होने सीता का रूप धारण किया हुआ था। सती ने उनके आराध्य देव श्रीराम की पत्नी सीता का रूप धारण करके उनकी परीक्षा लेकर उनका अनादर किया था। इस वजह से शिवजी ने मन ही मन सती का त्याग कर दिया। सती भी इस बात को समझ गयी और दक्ष के कुंड में कूदकर आत्महत्या कर ली।

अब आप अच्छे से समझ गए होंगे कि थोडा सा अविश्वास होने पर पति-पत्नी के बीच का यह पवित्र रिश्ताटूटने के कगार पर आ जाता है। कई बार दोनों एक दुसरे की बातों पर यकीन नहीं करते हैं, इस वजह से दोनों का रिश्ता टूट जाता है। इसलिए इस रिश्ते को बहुत ज्यादा देखभाल करने की जरुरत होती है।

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