अध्यात्म

आखिर किस तरह से राहु-केतु बने ग्रह, इनसे जुड़ी हुई ये महत्वपूर्ण बातें कम ही लोगों को मालूम हैं

हिन्दू धर्म में कई तरह की मान्यताएं हैं। हिन्दू धर्म में विश्वास करने वाले लोग कई चीजों में यकीन रखते हैं। उन्ही में से एक है ज्योतिषशास्त्र। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कई लोग अपना जीवन जीते हैं। उन्हें जीवन में कोई भी काम करना होता है या किसी परेशानी का हल खोजना होता है तो वह तुरंत ज्योतिष का सहारा लेते हैं। ज्योतिषशास्त्र में यकीन करने वाले लोग कोई भी शुभ काम बिना ज्योतिष की आज्ञा के नहीं करते हैं। जब ग्रहों की स्थिति सही होती है तभी यह कोई काम करते हैं।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुल नौ ग्रह बताये गए हैं। इनमें सबसे प्रमुख ग्रह सूर्य को माना गया है। इसे सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। हालाँकि इस बात को तो वैज्ञानिक भी मानते हैं, कि हमारे सौरमंडल में 9 ग्रह हैं और उन सभी ग्रहों में सूर्य सबसे महत्वपूर्ण हैं। हालाँकि विज्ञान सूर्य को ग्रह नहीं बल्कि तारा मानता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इन नौ ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही किसी व्यक्ति के जीवन में सुख और दुःख के योग बनते हैं। इन्ही नौ ग्रहों में से दो ग्रह ऐसे भी हैं, जिन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। राहु-केतु ऐसे ही ग्रह हैं। राहु-केतु से जुड़ी हुई कुछ ऐसी बातें हैं, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है।

जानिए राहु-केतु से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी:

*- राहु-केतु, सूर्य, चन्द्र और मंगल जैसे ग्रहों की तरह धरातल वाले ग्रह नहीं हैं। यही वजह है कि इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है।

*- कई लोग शनि की तरह ही इससे भी भयभीत रहते हैं। राहु-केतु के डर की वजह से दक्षिण भारत में राहु काल में कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं किया जाता है।

*- एक प्राचीन कथा के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका का विवाद दैत्य विप्रचित से हुआ था। विवाह के बाद दोनों की सौ संतानें हुई। उन्ही में से सबसे बड़ा पुत्र राहु था।

*- जब देवासुर संग्राम हुआ था तब राहु ने भी भाग लिया था। समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक अमृत भी था। जब भगवान विष्णु मोहिनी का रूप धारण करके देवताओं को अमृत पिला रहे थे तभी चुपके से रूप बदलकर देवताओं के बीच में राहु भी बैठ गया। भगवान विष्णु ने उसे भी अमृत पान करवा दिया, लेकिन सूर्य और चन्द्र ने उसे पहचान लिया। उसके बाद गुस्साए हुए विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर काट दिया। हालाँकि सिर और धड़ अलग-अलग होने के बाद भी अमृत पीने की वजह से दोनों अमर हो गए।

*- राहु के अमर होने के बाद देवता भी उससे डरने लगे। देवता डरकर भगवान शिव के पास उसका संहार करने के लिए पहुंचे। शिवजी ने श्रेष्ठ चंडिका को मातृकाओं के साथ भेजा। देवताओं ने राहु के सिर को रोके रखा लेकिन अमर होने की वजह से राहु का धड़ अकेले ही मातृकाओं से युद्ध करता रहा।

*- राहु को परास्त कर पाना मुश्किल हो रहा था। उसी समय राहु के सिर ने खुद के धड़ के विनाश का तरीका देवताओं को बता दिया। उसने बताया कि पहले धड़ को फाड़ दें और उसमें से अमृत को निकाल लें। उसके बाद चंडिका और देवताओं ने ऐसा ही किया और राहु के धड़ को समाप्त कर दिया। उसके बाद राहु के सिर को देवताओं ने ग्रह का दर्जा दिया।

*- ग्रह बनने के बाद बी सूर्य और चन्द्र की गलतियों के लिए राहु ने उन्हें कभी माफ़ नहीं किया। आज भी पूर्णिमा और अमावस्या पर राहु सूर्य और चन्द्र को ग्रसता है। इसे ही सूर्य और चन्द्र ग्रहण के नाम से जाना जाता है।

*- ज्योतिषशास्त्र में राहु को भी एनी ग्रहों के समान ही माना जाता है। पराशर ऋषि ने राहु को अंधकार बढ़ाने वाले ग्रह की संज्ञा दी है। राहु-केतु दोनों ही रहस्यमयी ग्रह हैं।

 

*- राहु और केतु को राशियों का स्वामी नहीं बनाया गया। राहू मिथुन राशि में उच्च तथा मीन राशि में नीच का होता है।

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