गांधारी ने एक साथ कैसे 100 कौरवों को दिया था जन्म? जानिए यह रहस्य मयी कहानी
नई दिल्ली – कौरव और पांडवों के बीच धर्मयुद्ध की लड़ाई से जुड़े धर्मग्रंथ महाभारत में ऐसे कई प्रसंग दिये गए हैं, जिसके बारे में आज भी रहस्य बना हुआ है। ऐसा ही एक रहस्य है कौरव का जन्म? यह एक चमत्कार ही है की एक माता ने एक साथ 100 पुत्रों को जन्म दिया। यह एक रहस्यम है जिसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं। सबसे पहले तो आपको बता दें कि गांधारी के गर्भ से 100 कौरवों का जन्म कोई प्राकृतिक गर्भ घटना नहीं बल्कि एक ऐसी घटना है जो भारत के प्राचीन रहस्यमयी विज्ञान का उदाहरण है।
इससे पहले ही हम आपको 100 कौरवों के जन्म के बारे में बताएं, सबसे पहले जान लेते हैं कि उनको जन्म देने वाली माता गांधारी कौन थीं। गांधारी, गांधार देश के राजा ‘सुबल’ की पुत्री थीं। गांधार देश में जन्म लेने के कारण उनका नाम गांधारी रखा गया था। आपको बता दें कि गांधार आज अफगानिस्तान का हिस्सा है, जिसे आज भी कंधार के नाम से ही जाना जाता है। महाभारत के सबसे चर्चित पात्र शकुनि को तो आप जानते ही होंगे वो गांधारी के भाई थे। शकुनि गांधारी के विवाह के बाद उनके साथ ही रहने लगे थे।
गांधारी का विवाह हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र से हुआ। क्योंकि, धृतराष्ट्र अंधे थे इसलिए गाधांरी ने भी जीवन भर अपनी आंखों पर पट्टी बांधे रखी। अपने पति की वजह से ही गांधारी आजीवन अंधे व्यक्ति की तरह रहीं। राजा धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्र हुए जिन्हें आज हम कौरवों के नाम से जानते हैं। लेकिन, इन 100 पुत्रों का जन्म इतिहास की सबसे विचित्र घटना है, जिसके बारे में शायद आपको भी पता न हो।
महारानी गांधारी बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। गांधारी की सेवा से प्रसन्न होकर महर्षि वेदव्यास ने उन्हें 100 पुत्रों की माता होने का वरदान दिया था। महर्षि वेदव्यास वरदान के अनुसार वो गर्भवती हुईं, लेकिन कुछ दिनों बात यह पता चला की उनके गर्भ में एक नहीं बल्कि 100 बच्चों का गर्भ है। इसके अवाला, जहां सामान्य महिलाओं का गर्भ 9 महिने का होता है, वहीं गांधारी दो वर्षों तक गर्भवती रहीं। 24 महीनों के पश्चात भी जब गांधारी को प्रसव नहीं हुआ तो उन्होंने इस गर्भ को गिराने का निश्चय किया। गांधारी ने अपने बच्चे का गर्भपात किया, तो उसमें लोहे के समान मांस का एक पिंड निकला, जिसे देखकर वो घबरा गईं ।
मान्यता है कि इस पूरी घटना को उस वक्त महर्षि वेदव्यास भी देख रहे थे। गर्भपात की बात सुनते ही वो हस्तिनापुर और उन्होंने महारानी के गर्भ से निकले मांस पिंड पर एक विशेष प्रकार का जल छिड़कने को कहा। मान्यता के मुताबिक, पिंड पर जल छिड़कते ही मांस के पिंड के 101 टुकड़े हो गए। महर्षि ने इसके बाद गांधारी को इन मांस पिंडो को घी से भरे 101 कुंडो में डालकर दो वर्ष तक ऐसे ही रखे रहने के लिए कहा।
दो वर्ष बितने के पश्चात गांधारी ने घी कुंडो को खोला। कहा जाता है कि गांधारी ने सबसे पहले जिस कुंड को खोला उससे दुर्योधन का जन्म हुआ। इसी तरह गांधारी ने बाकी के 100 कुड़ों को खोला और सभी से एक पुत्र का जन्म हुआ, जिनमे से एक पुत्री थी। पुत्री का नाम दु:शला था। ऐसा कहा जाता है कि जन्म लेने के बाद ही दुर्योधन गधे की तरह रेकने लगा था। जिसे देखकर पंडितों और ज्योतिषियों ने कहा कि यह बच्चा कुल का नाश कर देगा। ज्योतिषियों ने दुर्योधन का त्याग करने के लिए कहा था, लेकिन पुत्र मोह से विवश धृटराष्ट्र ऐसा नहीं कर सके। इसके बाद की कहानी तो आपको पता ही है कि कैसे 100 कौरवों को 5 पांडवों के हाथों मृत्यु प्राप्त हुई थी।