भगवान श्रीकृष्ण की 16,100 पत्नियों और 8 पटरानियो के बारे में सच जानकर आपके होश उड़ जाएंगे
हिन्दू धर्म के भगवान श्रीकृष्ण को भला कौन नहीं जानता? माखन चोर कृष्ण कन्हईया और उनकी गोपियों की कथाएँ तो आपने सुनी ही होंगी. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि भगवान कृष्ण की 16,100 पत्नियाँ और 8 पटरानिया थी? हिंदू धर्म के शास्त्रों और महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण की सभी रानियों और पटरानियों के विवाह की कथा के साथ साथ उन के गूढ़ रहस्य को भी बताया गया है. भगवान श्रीकृष्ण को सबसे नटखट भगवान माना जाता है. बचपन से ही वह माखन को चुरा कर खाने में यकीन रखते थे.
इसके इलावा भगवान श्री कृष्ण के नाम का अर्थ ही अंधकार में विलीन होने वाला और संपूर्ण को अपने आप में समा लेने वाला है. इसके इलावा राधा शब्द भी धारा से उल्टा है. जहां धारा किसी चीज से बाहर आती है, वही राधा अपने स्रोत में वापस समा जाती है. शायद इसीलिए ही राधा को भगवान श्रीकृष्ण से बिना विवाह रचाए भी उन्हें पवित्र भावना के साथ देखा जाता है. अक्सर आपने देखा होगा कि भगवान श्री कृष्ण का नाम हमेशा राधा के साथ ही लिया जाता है ना कि उनकी पत्नियों के साथ. आज के इस आर्टिकल में हम आपको भगवान श्रीकृष्ण की 16,100 पत्नियों और आठ पटरानियों के बारे में बताने जा रहे हैं.
तो ये हैं भगवान की रानियां
हिंदू धर्म में महाभारत का जिक्र आप सब ने सुना ही होगा. महाभारत में द्रौपदी के चीरहरण के लिए पांडवों और कौरवों के युद्ध को दर्शाया गया है. इस युद्ध में भगवान श्री कृष्ण भी शामिल थे. शास्त्रों की माने तो भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानिया और 16100 रानियां थी. विद्वानों के कहे अनुसार भगवान की प्रमुख रानियां केवल 8 ही थी बाकी 16100 रानियां प्रतीकात्मक थी.
वेदों और ऋषि रचनाओं की माने तो भगवान श्री कृष्ण की 16100 रानियां वेदों की ऋषिचाएं माना जाता है. चारों वेदों में लगभग एक लाख श्लोक हैं जिनमें से 80 हजार श्लोक यज्ञ के हैं और बाकी के 4000 श्लोक पराशक्तियों के हैं. बाकी बचे 16000 लोग गृहस्थी या आम लोगों की रचनाएं हैं (जो भगवान के भक्त रह चुके हैं). शायद इसीलिए जनसामान्य के लिए ऋषचाओं को ही भगवान की रानियां माना जाता है.
आठ पटरानियों का सच
आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि भगवान कृष्ण की आठ पटरानियां थी. इन पटरानियों में रुक्मणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रवृंदा, सत्या, रोहिणी और लक्ष्मणा शामिल है. इनमें से रुक्मणी को भगवान श्री कृष्ण के प्रमुख पटरानी माना जाता है. रुकमणी विदर्भ देश की राजकुमारी थी और भगवान श्रीकृष्ण को मन ही मन अपना पति मान बैठी थी. रुकमणी ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रेम पत्र भिजवाया था जिसको पढ़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उनका अपहरण करवा कर उनसे शादी रचा ली थी.
रुकमणी के बाद सूर्य पुत्री कालिंदी उनकी दूसरी पत्नी थी. कालिंदी भगवान की सच्ची भक्ति थी. जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने उससे दूसरी शादी कर ली थी. इसके बाद उन्होंने उज्जैन की राजकुमारी मित्रवृंदा को स्वयंवर में जीतकर अपनी तीसरी रानी बनाया था. इसके बाद सत्य राजा नग्नजित की पुत्री इनकी चौथी पटरानी बनी. चौथी पत्नी के पिता के कहे अनुसार भगवान कृष्ण ने सात बैलों को एक साथ नथ कर उन्हें जीता था.
इसके बाद वह यक्षराज की बेटी जाम्बवंती को ब्याह कर लाये थे. पांचवी पत्नी के बाद रोहिणी ने भगवान कृष्ण को स्वयंवर में चुना था. इसके बाद सत्यभामा रजा सात्राजीत ने अपनी पुत्री का ब्याह भगवान के संग रचा दिया था. रही बात उनकी आठवी पत्नी लक्ष्मणा की तो उसने भी भगवान को स्वयंवर में अपना वर चुना था.