अध्यात्म

जानिए भगवान श्री राम आखिर क्यूँ अपने ही भक्त हनुमान से हार गए थे? देखें वीडियो

नई दिल्ली: इस दुनिया में हर धर्म के लोगो की कुछ पौराणिक और मिथिहासिक कथाएँ हैं जिन्हें आज भी लोग मानते चले आ रहे हैं. इन्ही कथायों में हिन्दू धर्म की मिथिहसिक कथाएँ काफी प्रसंगिक है. आप सब ने महाभारत तो पढ़ा ही होगा. महभारत में कौरवों और पांडवों की जंग का वर्णन किया गया है, जिस पर लगभग हर कोई विश्वास करता आ रहा है.

ठीक ऐसे ही ऐसी कई सारी कहानियां है, जो कलयुग में भी प्रासंगिक हैं. हिंदू धर्म के भगवानों की बात करें तो सबसे पहला जिक्र भगवान श्रीराम का आता है. अपने 14 साल के वनवास के दौरान भगवान श्री राम, भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ जीवन यात्रा पर निकल गए थे. जिसके बाद उनके जीवन में रावण जैसे राक्षस ने तहलका मचा दिया था. इसी बीच उनकी मुलाकात अपने सबसे बड़े भक्त हनुमान से हुई थी जिनका वर्णन रामायण में किया गया है.

अगर बात उत्तर रामायण की करें तो अश्वमेघ यज्ञ पूरा होने के बाद भगवान श्री राम ने एक बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया था. इस सभा में उन्होंने सभी देवताओं, ऋषि-मुनियों, यक्षों, किन्नरों और राजाओं आदि को आमंत्रित किया था. इसी सभा में नारद मुनि ने एक राजा को बुरी तरह से भड़का दिया था जिसके चलते उसने सभा में सब को प्रणाम किया परंतु ऋषि विश्वामित्र को छोड़ दिया. इस बात से ऋषि विश्वामित्र के आत्मसम्मान को ठेस पहुंची और वह गुस्से से भर गए. इसके बाद विश्वामित्र ने भगवान श्री राम से कहा कि अगर सूर्य ढलने से पहले उन्होंने राजा को मृत्यु की सजा नहीं दी तो वह राम को श्राप दे देंगे. ऋषि की यह बात सुनकर सभा में मौजूद सभी लोग आश्चर्य चकित रह गए.

जिसके बाद श्री राम ने ऋषि को राजा को मारने का वचन दे दिया. इस बात की भनक जब राजा को लगी तो वह सभा से उठ कर भाग गया और हनुमान की माता अंजनी की शरण में जा गिरा. उस राजा ने हनुमान की माता को पूरी सच्चाई नहीं बताई और उनसे प्राणरक्षा का वजन मांग लिया. जिसके बाद माता अंजनी ने हनुमान को उस राजन की रक्षा करने का हुक्म सुना दिया.

अपनी माता का आदेश पाकर हनुमान जी ने श्री राम की शपथ लेकर कहा कि कोई भी राजन का बाल बांका नहीं कर पाएगा. परंतु जब उन्हें पता चला कि खुद श्रीराम ही उस राजन को मारना चाहते हैं तो हनुमान जी धर्म संकट में पड़ गए. हनुमान जी को समझ नहीं आ रहा था कि वह राजन के प्राण कैसे बचाएं और अपनी मां का दिया वचन कैसे पूरा करें. इसके इलावा में भगवान श्रीराम को श्राप से भी मुक्ति दिलाना चाहते थे.

इस दलदल में फंसे हनुमान जी ने राजन को सरयू नदी के तट पर जाकर भगवान राम का नाम जपने की सलाह दी. जब राजन उस नदी के तट पर पहुंचा तो हनुमान जी सक्षम रूप में राजन के पीछे छिप गए. हनुमान जी इस बात से वाकिफ थे कि भगवान राम का नाम जपने के कारण उस राजन का कोई भी बाल नहीं बांका कर सकता था. यहां तक कि खुद मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी नहीं.

जब भगवान श्री राम उस पथ पर राजा को मारने के लिए पहुंचे तो राजा राम नाम जपने लग गया. भगवान श्रीराम ने अपना शक्ति बाण निकाल कर उस राजन पर वार कर दिया. परंतु राम नाम जपने के कारण उस पर उस शक्ति बाण का कोई असर नहीं हुआ. भगवान राम समझ गए कि उनके नाम जपने के कारण वह उस राजन का कुछ नहीं बिगाड़ सकते और मूर्छित हो गए.

इसके बाद ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र को कहा कि वह भगवान राम को धर्म संकट से निकाल दें क्योंकि वह चाहकर भी अपने भक्तों को नहीं मार सकते. ऋषि वशिष्ठ ने बताया कि जितना बल राम के नाम में है, उतना खुद राम में भी नहीं है. भगवान राम की ऐसी दशा देखकर विश्वामित्र ने आखिरकार राम को संभाला और अपने श्राप से मुक्त कर दिया. देखें वीडियो- 

जब हनुमान ने मामले को संभलते देखा तो वह वापस अपने रूप में आ गए और भगवान राम के चरणों में गिर गए. ऐसे समय में हनुमान जी की आंखों में आंसू थे और उन्होंने माफी मांग कर भगवान राम को पूरी गाथा बताई. अपने भक्त की कथा सुनकर भगवान राम बोले “हनुमान जी ने इस प्रसंग से सिद्ध कर दिया कि भक्ति की शक्ति सदैव आराध्या की ताकत बनती है तथा सच्चा भक्त सदैव भगवान से भी बड़ा ही रहता है”. तो दोस्तों इस तरह भगवान राम को उनके अपने ही भक्त हनुमान जी ने हरा दिया.

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