हाथों में मेंहदी लगाए बेटी करती रही कन्यादान का इंतजार, पर जो हुआ उसने दिल दहला दिया
हर बेटी की इच्छा होती है कि उसकी शादी हो, हाथों में मेंहदी लगे, पिता अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उसका कन्यादान करे। एक लड़की इन्ही सपनों के साथ अपने हाथों में मेंहदी लगाए बैठी थी पर उसके साथ जो हुआ वो उसने कभी सपने में भी सोचा ना था । दरअसल लखीमपुर में एक बेटी अपने कन्यादान करने के लिए पिता का इंतजार कर रही थी, तभी एक ऐसी खबर आई की शादी की खुशियां मातम में तब्दील हो गईं।
दरअसल कोहरे की वजह लखीमपुर में तिलक चढ़ाकर लौट रहे लोगों की बुलेरो कार ट्रक से भिड़ गई। हादसे में पांच की मौत हो गई। लालूटांडा निवासी बचान सिंह अपनी बेटी का तिलक लेकर पूरनपुर के रुद्रपुर गांव गए थे। एक बुलेरो में सात लोग सवार थे पर लौटते वक्त यह हादसा हो गया । ऐसे में पिता की हादसे में मौत की सूचना पाते ही शादी के सपने संजोए गीता पर गमों की बिजली गिर गई। वह इस हादसे की खबर पाने के बाद बदहवास हो चली है। बचान सिंह के सात बच्चे हैं। इनमें चार बेटियां और तीन बेटे हैं। बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। अब छोटी बेटी गीता की शादी की तैयारी थी। प्रत्यक्ष दर्शियों के मुताबिक चालक नशे की हालत में ट्रक चला रहा था। इस वजह से उसकी गति नियंत्रित नहीं थी।
बीते रविवार को लखीमपुर के भीरा इलाके में हुए इस हादसे में पांच गृहस्थियां तबाह हो गई। मृतक में से किसी की बेटियां शादी लायक थीं, तो कोई बेटों को पैरों पर खड़ा करने की कोशिश में था, लेकिन क्रूर हादसे ने सपनों को मातम में बदल डाला। सोमवार को भीरा के तीन गांवों में मातम पसर गया। गांवों में चूल्हे नहीं जले।यह हादसा रविवार की रात करीब आठ बजे के वक्त हुआ था।
भीरा थाना क्षेत्र के चूराटांडा गांव निवासी विनोद उस बुलेरो को चला रहा था, जिसमें सभी सवार थे। सबसे आगे बैठे होने से विनोद की हादसे में न सिर्फ तुंरत मौत हो गई, बल्कि वह ट्रक और बुलेरो के अगले हिस्से में फंस गया। विनोद बुलेरो चालाकर किसी तरह जिंदगी चला रहा था। विनोद के दो बच्चे हैं। दोनों अभी छोटे हैं। एक बड़ा बेटा अनिल छह साल का है और छोटा अजीत चार साल का। विनोद की मौत ने परिवार को बेहाल कर दिया है।
हादसे में अशीष मिश्रा निवासी मझगई की जान भी चली गई। आशीष बचान सिंह आदि का रिश्तेदार नहीं था। वह लालूटांडा गांव में एक टावर पर काम करता था। बताया जाता है कि आशीष की दोस्ती बचान सिंह के भतीजे के साथ थी। भतीजा कार्यक्रम में जा नहीं पा रहा था तो गीता के भाई की हैसियत से उसने आशीष को भेज दिया। किसी को क्या खबर थी कि आशीष की जिंदगी का यह आखिरी सफर होगा।