एक ऐसा अद्भुत 1200 साल पुराना मंदिर जहाँ बरसाए जा चुके हैं हजारों बम, लेकिन कोई नुकसान नहीं हुआ
भारत को देवी-देवताओं और मंदिरों का देश कहा जाता है। भारत की गली-गली में कई मंदिर देखने को मिलते हैं। भारत के कुछ मंदिर अपनी बनावट और कुछ अपनी ख़ासियत के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। यहाँ पर कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं, जहाँ पर कई रहस्य भी छुपे हुए हैं। कुछ मंदिरों के बारे में कई तरह की कहानियाँ भी प्रचलित हैं। ऐसा ही एक अनोखा और प्राचीन मंदिर है राजस्थान में भारत और पाकिस्तान की सीमा पर स्थित तनोट माता का मंदिर।
यह मंदिर हमेशा से ही आस्था का केंद्र रहा लेकिन 1965 की भारत पाकिस्तान की लड़ाई के बाद यह मंदिर अपने चमत्कारों की वजह से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। जानकारी के अनुसार उस लड़ाई के समय पाकिस्तान की तरफ से इस मंदिर पर लगभग 3000 बम गिराए गए थे, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ। केवल यही नहीं मंदिर के परिसर में जो 450 बम गिराए गए थे, वो फटे ही नहीं। उन बमों को मंदिर के संग्रहालय में दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को देखने के लिए रख दिया गया है।
उस युद्ध के बाद मंदिर के सुरक्षा की जिम्मेदारी बीएसएफ ने अपने ऊपर लेते हुए, वहाँ एक चौकी भी बना दी है। तनोट माता को आवडा माता के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें हिंगलाज माता का ही एक रूप माना जाता है। हिंगलाज माता का शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है। हर साल यहाँ आश्विन और चैत्र महीने के नवरात्र में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर के बारे में कई तरह की प्राचीन कहानियाँ भी प्रचलित है।
एक कहानी के अनुसार बहुत समय पहले मामडिया नाम के एक चारण ने संतान प्राप्ति के लिए माता हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। माता प्रसन्न होकर चारण के सपने में आयी और उससे उसकी इच्छा पूछी। उसनें कहा कि आप मेरे यहाँ जन्म लीजिये। माता ने चारण की प्रार्थना स्वीकार की और उसे 7 पुत्रियों और 1 पुत्र का आशीर्वाद दिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक थीं आवड़ जिन्होंलने विक्रम संवत 808 में चारण के घर जन्म लिया। चारण की सातों पुत्रियां दैवीय चमत्कारों से युक्त थी।
उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की। बाद में माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया। राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया। ऐसी मान्यटता है कि विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की।