राजनीति

जंग 56 इंच के सीने की, सोशल मीडिया के भक्तों और विरोधियों कि जंग की अधीरता, देश के लिए खतरा

दिल्लीः उड़ी के बेस कैंप पर हुए हमले के बाद न सिर्फ सोशल मीडिया पर बने भक्त बल्कि विरोधी (Social media and Opponents) भी पुरे जोर शोर से चीख़ रहे हैं। युद्ध की ललकार और न होने पर फटकार की भरमार हो गई है। प्रधानमंत्री को क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए बताने वालों कि बाढ़ सी आई हुई है।

इस दुर्दशा से मुझे प्रधानमंत्री से सहानुभूति हो रही है। उनसे निर्णय लेने में जो देरी हो रही है, उससे युद्ध के लिए आतुर लोग अधीर हुए जा रहे हैं। मैं फ़ैसला लेने में प्रधानमंत्री की मदद करना चाहता हूँ। चाहता हूँ कि वे स्वतंत्र भाव से निर्णय लें।

Social Media पर जागरूकता की कमी –

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भारत में Social Media का जुनून लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। आजकल किसी भी मुद्दें का फैसला पहले सोशल मीडिया पर ही सुना दिया जाता है। मन की भड़ास निकालने का यह एक मजबूत हथियार साबित हो रहा है।  मगर अभिव्यक्ति की आजादी का दायरा तोड़ने वालों के लिए यह मंहगा साबित हुआ है। जिस तरह से उड़ी के बेस कैंप पर हुए हमले के बाद से सोशल मीडिया पर बने भक्त और विरोधी पुरे जोर शोर से चीख़ रहे हैं। युद्ध की ललकार और न होने पर फटकार की भरमार सी हो गई है। प्रधानमंत्री को क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए बताने वालों कि बाढ़ सी आई हुई है। उसमें जागरूकता की कमी दिख रही है।

युद्ध का फ़ैसला अकेले प्रधानमंत्री पर थोपना भी सही नहीं है। सो मीडिया के ज़रिये हवाबाज़ी हो रही है,वही काफी है यह बताने के लिए कि युद्ध शुरु हो चुका है।

विरोधियों में जंग की इतनी अधीरता क्यों  –

विपक्षी दलों या विरोधियों में इस बार जंग की जो अधीरता दिख रही है वो देश में पहले हुए आतंकी हमलों से भयावह है।  आइएं हम बताते हैं कि मोदी सरकार क्यों नहीं चाहती कि पाकिस्तान  से प्रत्यक्ष युद्ध हो –

 इसलिए मोदी सरकार नहीं चाहती “वॉर” –

आज के समय में किसी भी देश की ताकत उसके पास कितने परमाणु बम है, इससे मापी जाती है। पाकिस्तान के पास 100-120 परमाणु हथियार है जबकि भारत के पास केवल 90-110 ही है। चलिए अब थोड़ा सच का सामना भी कर लेते हैं। अंतरराष्ट्रीय राजनीति के कुछ अनकहे नियम होते हैं। आप एक देश पर केवल एक आतंकी हमले के आधार पर हमला नहीं कर सकते। वो भी तब जब औपचारिक और आधिकारिक रूप से उस देश का हाथ साबित न हुआ हो।

 proxy war

हाँ, आप अंतरराष्ट्रीय संबंधों को ताक पर रख कर ऐसा कर सकते हैं पर उसके लिए आपको अमेरिका और विरोधी को अफगानिस्तान होना होता है। न हम अमेरिका हैं और ना पाकिस्तान तालिबानी अफगानिस्तान। युध्द की संभावना तभी बन सकती हैं जब पाकिस्तान की सेना सीधे-सीधे इस तरह के हमले में शामिल हो। पाकिस्तान उस रास्ते को बहुत पहले ही छोड़ चुका है।

आधुनिक वॉर का नया रुप है “प्रॉक्सी वॉर” –  

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कोई भी देश युद्ध की तोहमत से बचना चाहता है। इसलिए देश प्रॉक्सी वॉर का इस्तेमाल करते हैं ताकि सीधे युद्ध के नुकसान और तोहमत दोनों से बचा जा सके। एक प्रॉक्सी का बेहतर जवाब एक प्रॉक्सी  ही हो सकता है युद्ध नहीं। इसलिए कश्मीर के जवाब में बलूचिस्तान सुनाई देता है। कम से कम आधुनिक अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तो यही हो रहा है।

सरकार इस हमले का जवाब देने में पूरी तरह सक्षम हैं। हमें पता न चले वो अलग बात है। और रही बात सबक की तो सबक जैसा कुछ होता नहीं है। जो देश चार युद्ध से सबक नहीं सीखा, वो एक और युद्ध से सबक सीखेगा, इस बात भी पर पूरा शक है। सबक के नाम पर सैकड़ों सैनिकों की आहुति देकर लोगों को  शांति मिलती है तो ये अलग बात है।

जब भारत के पास पाकिस्तान से बदला लेने के लिए “प्रॉक्सी वॉर” के अतिरिक्त और भी कई तरीके मौजुद हैं तो तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था को एक भयानक युद्ध में ढ़केलना कैसे उचित कदम हो सकता है?

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