अपने पिता राजीव गाँधी के नक्शेकदम पर चलते हुए राहुल गाँधी भी दुहरा रहे हैं वही गलतियाँ
नई दिल्ली: तीन तलाक का मामला देश में बहुत ज्यादा गरमाया हुआ था। लाभी सुनवाई के बाद आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध घोषित कर दिया। इससे मुस्लिम समुदाय के पुरुष खासे नाराज हुए थे। हालांकि काफी मुस्लिम आबादी खासतौर में महिलाएँ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के काफी खुश थीं। इसका नतीजा यह हुआ कि आधी मुस्लिम आबादी बीजेपी के साथ हो गयी। पहले देश में एक कहावत चला करती थी जो अब भी चल रही है कि देश के मुस्लिम बीजेपी को बिलकुल भी पसंद नहीं करते हैं और बीजेपी को भी मुस्लिमों की परेशानियों से कोई वास्ता नहीं है।
बीजेपी शुरुआत से ही एक हिन्दू पार्टी रही है और उसे इस बात पर हमेशा गर्व भी हुआ है। वहीँ कांग्रेस के साथ बिलकुल उल्टा है। वह एक धर्मनिर्पेक्ष पार्टी रही है। इसका कांग्रेस को काफी फायदा भी हुआ। जब चाहे वह राष्ट्रवादी का चोला पहनकर धार्मिक भी बन सकती है। कांग्रेस अपने इस एक पॉजिटिव पॉइंट को ढंग से भुनानें में नाकामयाब हुई और आये दिन गलतियाँ करती गयी। अब कांग्रेस की कमान युवा नेता राहुल गाँधी ने सम्भाल ली है और वह कांग्रेस के नए अध्यक्ष बने हुए हैं।
खुद युवा होने के बाद भी पार्टी में युवाओं को जगह देने की बजाय वह इस विवाद में लगे हुए थे कि वह एक जनेऊ धारी ब्राह्मण हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वो कौन से ब्राह्मण हैं। यही बात सुरजेवाला को भी नहीं समझ में आया। राजीव गाँधी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए वही गलती कर रहे हैं, जो कभी उनके पिता राजीव गाँधी ने की थी और कांग्रेस को उसकी भरपाई अब तक करनी पड़ रही है।
इस बात को समझने के लिए एक केस के बारे में जानना बहुत जरुरी है। 1978 में 62 साल की शाह बानो नाम की एक मुस्लिम महिला को उसके पति ने तलाक दे दिया था। उसके पाँच बच्चे थे। जब अपने गुजारे भत्ते के लिए शाह बानो ने अदालत में केस किया तो अदालत को भी लगा कि शाह बनो को पति से गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। इस फैसले से मुस्लिम समुदाय नाराज हो गया और उन्होंने आन्दोलन करने की धमकी दी। मुस्लिम संस्थाओं को खुश करने के लिए राजीव गाँधी ने एक कानून पास करके अदालत के फैसले को पलट दिया। उस समय बीजेपी लोकसभा में केवल दो सीटों के साथ थी। उसनें इस मामले को उठाया।
इस फैसले के बाद बीजेपी का राजनीति में पैर जम गया। दूसरी तरफ उन्होंने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया। इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि कभी भी दुश्मन के मजबूत पक्ष के साथ खेलना नहीं चाहिए। दुश्मन को उकसाना चाहिए कि वह आपने मजबूत पक्ष के साथ खेले। यह बात कांग्रेस को समझ में नहीं आती है। अगर आती तो राहुल गाँधी जनेऊ धारी ब्राह्मण होने की बात नहीं करते। जब बीजेपी ने धार्मिक पहचान पर हमला किया था तब उन्हें इस मामले को इस तरह से सामने रखना चाहिए था कि धर्म व्यक्ति का निजी मामला होता है।
इस वजह से वह हिंदुत्व को अन्य लोगों की तरह दिखावे की चीज नहीं समझते हैं। वहीँ बीजेपी का राहुल गाँधी के धार्मिक पहचान को राजनीतिक मुद्दा बनाना उसके डर और हार को दर्शाता है। बीजेपी को चुनाव प्रचार के दौरान रोजगार, भ्रष्टाचार और विकास का मुद्दा उठाना चाहिए था। कांग्रेस भी राहुल गाँधी को जनेऊ धारी ब्राह्मण बताने में जुट गयी थी, और कई फोटो भी पेश कर रही थी। जनता को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि राहुल गाँधी की धार्मिक पहचान क्या है?। लोगों को विकास और रोजगार से मतलब है।